परम आदरणीय प्रधान मंत्री जी, माननीय उपाध्यक्ष, योजना आयोग, भारत सरकार के मंत्रीगण, साथी मुख्यमंत्री गण तथा अन्य विशिष्ट अतिथिगण।
परम
आदरणीय
प्रधान
मंत्री
जी,
माननीय
उपाध्यक्ष,
योजना
आयोग,
भारत
सरकार
के
मंत्रीगण,
साथी
मुख्यमंत्री
गण तथा
अन्य
विशिष्ट
अतिथिगण।
1.
यह
मेरा
सौभाग्य
है कि
मुझे 11वीं
पंचवर्षीय
योजना
के
प्रारूप
पर
राष्ट्रीय
विकास
परिषद
की इस
बैठक
में
विचार
रखने
का
अवसर
मिला
है। 11वीं
पंचवर्षीय
योजना
के
दृष्टिकोण
पत्र
पर
परिषद
ने
पिछले
वर्ष
विचार
किया
था।
कृषि
क्षेत्र
से
संबंधित
बिन्दुओं
पर
विचार-विमर्श
करने
हेतु
एक
विशेष
बैठक
भी
आयोजित
की गई
थी।
आयोग
द्वारा
गठित
कार्यदलों
की
बैठकों
में
क्षेत्र
विशेष
से
संबंधित
सुझाव
रखने
के
अवसर
पर भी
राज्यों
के
प्रतिनिधियों
को
प्राप्त
हुये
हैं।
इनमें
से
अनेक
सुझावों
का
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
में
सम्मिलित
करने
के
लिये
मैं
योजना
आयोग
को
धन्यवाद
देता
हूं।
2.
ग्यारहवीं
पंचवर्षीय
योजना
अवधि
अनुकूल
आर्थिक
परिदृश्य
की
पृष्ठभूमि
में
प्रारंभ
हुई
है।
विश्व
अर्थव्यवस्था
ने
वर्ष 2003-04
से
महत्वपूर्ण
रूप से
उच्च
विकास
दर
दर्ज
की है
यद्यपि
अभी
हाल
में ही
इसमें
कुछ
कमी आई
है। 10वीं
पचंवर्षीय
योजना
के
अंतिम
वर्षों
में
कृषि
विकास
दर में
भी
सुधार
हुआ
है।
बचत
एवं
निवेश
की
दरों
में
वृद्धि
हुई है,
विशेषकर
अधोसंरचना
निर्माण
हेतु
सार्वजनिक
पूंजी
निवेश
में,
हालांकि
खाद्य
पदार्थों
की
कीमतों
में
तथा
रूपये
के
मूल्य
वृद्धि
के
कारण
श्रमिक
वर्ग
की
कठिनाईयां
बढ़ी
हैं।
राज्यों
की
वित्तीय
स्थिति
में
सुधार
हुआ है
परन्तु
छठवें
वेतन
आयोग
के
परिप्रेक्ष्य
में
राज्यों
पर
वेतन
आदि का
अतिरिक्त
भार
अपरिहार्य
है।
इसके
लिए
केनन्द्र
द्वारा
राज्यों
को
अतिरिक्त
संसाधन
उपलब्ध
कराना
चाहिए।
3.
ग्यारहवीं
योजना
में
सभी
वर्गों
के
आर्थिक
विकास
को
समाहित
करने
की
अवधारणा
सराहनीय
है
क्योंकि
10वीं
पंचवर्षीय
योजना
अवधि
में
आर्थिक
विकास
की
उच्च
दर के
बावजूद
भौगोलिक
क्षेत्रों
एवं
सामाजिक
वर्गों
के बीच
का
अंतर
कम
नहीं
हो सका
है और
समाज
के एक
बड़े
वर्ग
को इस
उच्च
विकास
दर का
लाभ
प्राप्त
नहीं
हो
सका।
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
में इस
अंतर
को कम
करने
के
लिये
कुछ
कार्यक्रम
सम्मिलित
किये
गये
हैं
परन्तु
अनेक
महत्वपूर्ण
बिन्दुओं
का
समावेश
नहीं
है।
4.
ग्यारहवीं
पंचवर्षीय
योजना
के
लिये
जुटाये
जाने
वाले
संसाधन
सकल
घरेलू
उत्पाद
के
प्रतिशत
के रूप
में 13.54
प्रतिशत
है, जो 10वीं
पंचवर्षीय
योजना
अवधि
में
वास्तविक
उपलब्धि
9.46
प्रतिशत
की
तुलना
में
महत्वपूर्ण
रूप से
4.08
प्रतिशत
अधिक
है।
वर्ष 2006-07
के
बाजार
मूल्य
पर
अधोसंरचना
में
अनुमानित
पूंजी
निवेश
रूपये
20,60,193
करोड़
है जो 10
वीं
पंचवर्षीय
योजना
में
अधोसंरचना
में
निवेश
से 136
प्रतिशत
अधिक
है।
अधोसंरचना
विकास
पर जोर
पूरी
तरह से
औचित्यपूर्ण
है
परन्तु
अधोसंरचना
के
विभिन्न
घटकों
के
मध्य
प्राथमिकता
पर
पुनर्विचार
जरू री
है।
दूरसंचार
का
हिस्सा
10वीं
पंचवर्षीय
योजना
अवधि
में 11.86
प्रतिशत
से
बढ़ाकर
11 वीं
पचंवर्षीय
योजना
में 12.54
प्रतिशत
करना
तथा
सिंचाई
का
हिस्सा
10वीं
योजना
में 12.80
से
घटाकर
11वीं
योजना
में 12.49
प्रतिशत
करना
प्रस्तावित
है।
यहां
तक कि
दूरसंचार
में
केन्द्र
का
हिस्सा
31.25
प्रतिशत
तथा
सिंचाई
में
मात्र
9.62
प्रतिशत
है। इस
एक
तरफा
प्राथमिकता
निर्धारण
से सभी
वर्गों
को
समाहित
करने
वाले
विकास
की
प्राप्ति
नहीं
की जा
सकती।
इसमें
सुधार
की
आवश्यकता
है।
5.
विश्व
अर्थव्यवस्था
को आगे
ले
जाने
इंजन-अमेरिका,
यूरोप
तथा
जापान,
की गति
शिथिल
होने
के
पूर्व
संकेत
मिल
रहे
हैं।
इन
देशों
की
अर्थव्यवस्था
में
शिथिलता
से
विकासशील
देशों
की
जिन्सों
तथा
निम्न
तकनीकी
औद्योगिक
वस्तुओं
की
मांग
पर
महत्वपूर्ण
प्रभाव
पड़ता
था।
सौभाग्यवश
ब्राजील,
रूस,
भारत
तथा
चीन
जैसे
देशों
की
आर्थिक
शक्ति
के
प्रादुर्भाव
के
कारण
इन
वस्तुओं
की
मांग
पर इस
बार
असर
नहीं
पड़ा
है।
लेकिन
अब
विनिर्माण
क्षेत्र
में
उच्च
विकास
दर को
बनाये
रखने
के
लिये
औद्योगिक
वस्तुओं
के
घरेलू
बाजार
के
विस्तार
को
अधिक
महत्व
देने
की
आवश्यकता
है।
औद्योगिक
वस्तुओं
एवं
सेवाओं
के
लिये
घरेलू
बाजार
अभी भी
शहरी
मध्यम
वर्ग
पर
अत्यधिक
आश्रित
है
जबकि
यह
हमारी
आबादी
की
मात्र
20
प्रतिशत
है।
ग्रामीण
बाजार
हमारी
घरेलू
मांग
का 40
प्रतिशत
मात्र
है
जबकि
यह
आबादी
का 65
प्रतिशत
है। इस
बाजार
के
निरंतर
विस्तार
करने
के
लिये
कृषि
में
उच्च
विकास
दर
आवश्यक
है।
देश की
दो-तिहाई
जनता
और 56
प्रतिशत
कार्यबल
को
आजीविका
प्रदान
करने
वाले
कृषि
क्षेत्र
के
विकास
के
बिना
आर्थिक
विकास
का
लोकतांत्रिक
तर्काधार
संदेहास्पद
हो
जाता
है।
ग्रामीण
अर्थव्यवस्था
का
मुख्य
आधार
होने
के
कारण
कृषकों
की आय
में
समुचित
एवं
सतत्
वृद्धि
के
बिना
औद्योगिक
क्षेत्र
के
विकास
के
लिये
आवश्यक
मांग/बाजार
में भी
वांछित
वृद्धि
नहीं
हो
पायेगी।
आम
आदमी
विशेषकर
निम्न
वर्ग
के
लोगों
के
लिये
खाद्यान्न
जैसी
आवश्यक
वस्तुओं
की
पर्याप्त
मात्रा
में और
उचित
दाम पर
उपलब्धता
बनाये
रखने
के
लिये
भी
कृषि
का
विकास
आवश्यक
है।
6.
परिषद
की गत
वर्ष
आयोजित
बैठक
में
मैंने
यह
आग्रह
किया
था कि 11वीं
तथा 12वीं
पंचवर्षीय
योजनाओं
को '
भारत
की जल
योजना
'
घोषित
किया
जाय
तथा
वृहद
सिंचाई
परियोजनाओं
को '
राष्ट्रीय
परियोजना
' के
रूप
में
क्रियान्वित
किया
जाय।
मैं
योजना
आयोग
को
इसके
लिये
बधाई
देता
हूं कि
राष्ट्रीय
राजमार्ग
विकास
परियोजना
की
तर्ज
पर
सिंचाई
क्षेत्र
में
राष्ट्रीय
परियोजना
के
विचार
को
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
में
सम्मिलित
किया
है।
सिंचाई
के
लिये
जल
संसाधनों
का
विकास,
विशेषकर
वर्षाधारित
क्षेत्रों
में जल
संसाधनों
का
विकास,
कुशल
प्रबंधन
और
वैज्ञानिक
तकनीकों
का
समुचित
उपयोग
कृषि
की
उत्पादकता
और
अर्थव्यवस्था
को
सुदृढ़
आधार
प्रदान
किये
जाने
के
लिये
सर्वाधिक
महत्वपूर्ण
है।
वर्षा
आधारित
क्षेत्रों
में
सिंचाई
के
अभाव
में
पैदावार
बढ़ाने
वाली
नई
तकनीक
के
प्रभावी
नहीं
होने
के
कारण
अभी भी
औसत
पैदावार
लगातार
निम्न
स्तर
पर बनी
हुई
है। इन
क्षेत्रों
में भू-धारी
वर्ग
में भी
गरीबी
का
प्रतिशत
अपेक्षाकृत
अधिक
बना
हुआ
है।
सिंचाई
सुविधा
में
त्वरित
विस्तार
से न
केवल
कृषि
उत्पादन
में
वृद्धि
होगी
जिससे
खाद्य
पदार्थों
के
बढ़ते
मूल्य
को
नियंत्रित
किया
जा
सकेगा
बल्कि
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
गरीबी
को ठोस
रूप से
भी कम
किया
जा
सकेगा
तथा
औद्योगिक
वस्तुओं
के
लिये
भी
बाजार
का
विस्तार
होगा।
इससे
दु:चक्र
प्रभावी
रूप से
समाप्त
होगा
तथा
लाभकारी
चक्र
निर्मित
होगा।
7.
मोटे
अनुमान
अनुसार
देश के
सिंचाई
संसाधनों
के
समग्र
विकास
हेतु
लगभग
रूपये
चार
लाख
करोड़
के
निवेश
की
आवश्यकता
है।
वर्तमान
गति से
इस
कार्यक्रम
को
संपन्न
करने
में 5
से 6
दशक लग
जायेंगे।
मेरा
निश्चित
मत है
कि
परिषद
इस
कार्यक्रम
को 10
वर्ष
के
अंदर
पूरा
करने
का
निर्णय
ले। इस
निवेश
राशि
में
राज्य
और
केन्द्र
की आधा-आधा
हिस्सेदारी
हो।
प्रत्येक
प्रदेश
की एक
समग्र
समेकित
सिंचाई
योजना
बननी
चाहिये।
इस
योजना
में
वृहद,
मध्यम,
लघु
सिंचाई
परियोजनाओं
के साथ-साथ
वर्षा
जल
संरक्षण
का काम
भी
समाहित
हो। 'ड्रिप
' जैसी
आधुनिक
सिंचाई
पद्धतियों
को
सस्ते
दाम पर
उपलब्ध
कराना
और
सिंचाई
के
लिये
आवश्यक
ऊर्जा
आपूर्ति
भी इस
योजना
का भाग
हो।
वर्षा
जल
संधारण
सहित
सिंचाई
की सभी
योजनाओं
को
केन्द्र
तथा
राज्य
सरकारों
के एक
ही
विभाग
के
अंदर
रखे
जाने
से
कार्यक्रम
के
क्रियान्वयन
में
सुविधा
होगी।
8.
ग्यारहवीं
योजना
अवधि
में कम
से कम
नदी
क्षेत्रों
को
जोड़ने
वाली
एक
परियोजना
का
क्रियान्वयन
प्रारंभ
करने
के
प्रस्ताव
का मैं
स्वागत
करता
हूं।
मध्य
प्रदेश
द्वारा
उत्तर
प्रदेश
के साथ
प्रस्तावित
केन-बेतवा
लिंक
परियोजना
के
लिये
सहमति
पत्र
पर
हस्ताक्षर
किया
गया
है।
परियोजना
के
सर्वेक्षण
एवं
अन्वेषण
का
कार्य
राष्ट्रीय
जल
विकास
अभिकरण
को
सौंपा
गया
है।
इसे
शीघ्र
संपादन
करने
की
आवश्यकता
है
जिससे
11वीं
योजना
अवधि
में
इसको
राष्ट्रीय
परियोजना
के रूप
में
क्रियान्वित
किया
जा
सके।
9.
प्रतिस्पर्धात्मक
विश्व
में
तीव्र
आर्थिक
विकास
दर
प्राप्त
करने
तथा
पिछड़े
हुये
क्षेत्रों
में
निवेश
आकर्षित
करने
के
लिये
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
ने
अच्छी
गुणवत्ता
की
अधोसंरचना
को
सबसे
अधिक
महत्वपूर्ण
आवश्यकता
के रूप
में
चिन्हित
किया
है।
दृष्टिकोण
पत्र
ने यह
माना
था कि
पिछड़े
राज्यों
में
कमजोर
अधोसंरचना
के
कारण
उनका
विकास
प्रतिकूल
रूप से
प्रभावित
हुआ
है।
बैकवर्ड
रीजन
ग्रांट
फण्ड
अंतर्गत
अत्यंत
अल्प
संसाधन
उपलब्ध
होते
हैं
जिनसे
राज्य
के
भीतर
अधोसंरचना
के
असंतुलन
को
सीमित
रूप से
ही दूर
करने
में
मदद
मिलती
है।
राज्यों
के बीच
अधोसंरचना
असंतुलन
को दूर
करने
के
लिये
यह
पूरी
तरह से
पर्याप्त
नहीं
है।
निजी
निवेश
का
बड़ा
हिस्सा
देश के
विकसित
क्षेत्रों
में जा
रहा है
जिससे
राज्यों
एवं
क्षेत्रों
के बीच
का
अंतर
बढ़
रहा
है।
अधोसंरचना
विकास
के
केन्द्रीय
कार्यक्रम
तथा
विशेष
आर्थिक
प्रक्षेत्र
के
माध्यम
से
औद्योगिक
अधोसंरचना
का
निजी
क्षेत्र
द्वारा
विकास
दोनों
ही
विकसित
क्षेत्रों
को लाभ
पहुंचा
रहे
हैं।
गत
वर्ष
राष्ट्रीय
विकास
परिषद
की
बैठक
में
विषयों
को
उठाया
गया था
परन्तु
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
में इन
चिंताओं
को दूर
करने
के
लिये
कोई
पहल
नहीं
की गई
है।
10.
गत
वर्ष
परिषद
की
बैठक
में यह
सुझाव
आया था
कि
क्षेत्रीय
असंतुलन
को कम
करने
के
लिये
एक
उपाय
यह भी
है कि
देश के
आदिवासी
क्षेत्रों
में
औद्योगिक
तथा
सामाजिक
विकास
के
लिये
निजी
निवेश
को उसी
तरह
प्रोत्साहित
किया
जाय
जैसे
विशेष
दर्जा
प्राप्त
राज्यों
के
लिये
किया
जा रहा
है।
प्रारूप
योजना
पत्र
में यह
स्वीकार
किया
गया है
कि
हिमाचल
तथा
उत्तराखंड
जैसे
पहाड़ी
राज्यों
के
लिये
उत्पाद
शुल्क
संबंधी
वर्तमान
छूटों
के
कारण
अन्य
राज्यों
से
पूंजी
का
पलायन
हुआ है
तथा यह
अनुशंसा
की गई
है कि
इन
प्रोत्साहनों
की जगह
पूर्णत:
अथवा
आंशिक
रूप से
अधोसंरचना
के
त्वरित
विकास
कार्यक्रम
लिये
जाने
चाहिये।
अधोसंरचना
विकास
के इसी
तरह के
कार्यक्रम
अन्य
पिछड़े
क्षेत्रों,
विशेषकर
आदिवासी
क्षेत्रों
के
लिये
भी
लिये
जाने
की
आवश्यकता
है।
11.
राज्यों
की
लागत
हिस्सेदारी
के
आधार
पर
नवीन
परियोजनाएं
लेने
की
रेल्वे
की
नीति
पर
पुनर्विचार
करने
की
आवश्यकता
है। यह
पिछड़े
राज्यों
के
प्रति
न्याय
नहीं
है।
इनमें
से
अधिकांश
राज्यों
में
आदिवासियों
की
बड़ी
आबादी
है तथा
रेल
संपर्क
का
अभाव
है।
खनिज
संपदा
संपन्न
आदिवासी
इलाकों
को तो
खनिज
संपदा
दोहन
के
कारण
रेल
संपर्क
प्राप्त
हो गया
है तथा
उच्च
किराये
की
दरों
के
कारण
उनके
द्वारा
अन्य
भौगोलिक
तथा
आर्थिक
क्षेत्रों
को कास
सबसीडाइज
भी
किया
गया
है।
परंतु
खनिज
संपदा
रहित
आदिवासी
क्षेत्र
स्थानीय
अर्थव्यवस्था
के
विकास
हेतु
रेल
परियोजनाओं
में
पूंजी
निवेश
आकर्षित
करने
में
असफल
रहे
हैं।
ऐसे
अनेक
जिलों
में
नक्सली
हिंसा
की
वारदातें
हो रही
हैं।
रोजगार
के
अवसरों
के
निर्माण
के
लिये
स्थानीय
अर्थव्यवस्था
का
विविधिकरण
आवश्यक
है और
इसके
लिये
जरूरी
है रेल
संपर्क।
मैं
यहां
पुन:
आग्रह
करना
चाहूंगा
कि कम
से कम
वीआरजीएफ
में
शामिल
पिछड़े
जिलों
की
नवीन
रेल
परियोजनाओं
में
राज्य
की
हिस्सेदारी
की
मांग
रेल्वे
द्वारा
न की
जाय।
12.
केन्द्र
के
द्वारा
राष्ट्रीय
राजमार्ग
विकास
का एक
अति
महत्वाकांक्षी
कार्यक्रम
प्रारंभ
किया
गया है
परंतु
स्वर्ण
चतुर्भुज
परियोजना
में
पिछड़े
राज्यों
को
लगभग
अनदेखा
किया
गया
है।
विकसित
क्षेत्रों
में ही
प्रस्तावित
एक्सप्रेस
हाईवे
के आने
की
संभावनाएं
हैं।
विनिर्माण
क्षेत्र
में
निजी
पूंजी
निवेश
को
सुगम
बनाने
के
लिये
राजमार्ग
महत्वपूर्ण
अधोसंरचना
है।
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
में
स्वीकार
किया
गया है
कि
राष्ट्रीय
राजमार्गों
के
रखरखाव
के
लिये
उपलब्ध
करायी
जा रही
धनराशि
अत्यंत
अपर्याप्त
है। इस
तरह
मध्यप्रदेश
जैसे
राज्य
न केवल
राष्ट्रीय
राजमार्गों
के
उन्नयन
बल्कि
उनके
रखरखाव
के
लिये
भी
धनराशि
से
वंचित
हैं।
मध्यप्रदेश
में यह
एक
विचित्र
स्थिति
है कि
ग्रामीण
सड़कें
तो
उच्च
गुणवत्ता
की हैं
परन्तु
राष्ट्रीय
राजमार्ग
जीर्णशीर्ण
हैं।
इससे
राज्य
में
पूंजी
निवेश
के
वातावरण
पर
प्रतिकूल
प्रभाव
पड़
रहा
है।
राज्य
के
द्वारा
प्रदेश
में
स्थित
कतिपय
राष्ट्रीय
राजमार्गों
का
उन्नयन
निजी
भागीदारी
से
करने
में
रूचि
दिखायी
गई है
परन्तु
इसके
लिये
आवश्यक
भू'अर्जन
की
लागत
भी वहन
करने
में
केन्द्र
के
द्वारा
असमर्थता
व्यक्त
की गई
है।
13.
ग्यारहवीं
योजना
अवधि
में
विद्युत
उत्पादन
क्षमता
विस्तार
का
लक्ष्य
78577
मेगावाट
रखा
गया
है। यह
10वीं
योजना
अवधि
की
उपलब्धि
का
साढ़े
तीन
गुना
है।
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
में
इसे
अति
महत्वाकांक्षी
लक्ष्य
मानना
सही
है। 10वीं
योजना
में
लक्ष्य
प्राप्त
न होने
का एक
प्रमुख
कारण
उपकरण
प्रदायकों
द्वारा
समय पर
उपकरणों
की
प्रदायगी
न किया
जाना
है।
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
में इस
समस्या
का
समाधान
नहीं
है।
देश
में
पारेषण
व
वितरण
हानियां
तथा
भुगतान
करने
वाली
ग्राहकों
के
लिये
बिजली
की
दरें
दुनिया
में
सबसे
अधिक
बनी
हुई
है।
राजीव
गांधी
ग्रामीण
विद्युतीकरण
परियोजना
के
अन्तर्गत
वितरण
व्यवस्था
के और
विस्तार
से इस
व्यवस्था
पर
दबाव
और बढ़
रहा
है।
वितरण
हानियों
तथा
विद्युत
दरों
को कम
करने
के
लिये
वितरण
व्यवस्था
के
उन्नयन
हेतु
ठोस
पूंजी
निवेश
की
आवश्यकता
है।
एपीडीआरपी
अंतर्गत
वितरण
व्यवस्था
के
उन्नयन
हेतु
केन्द्रीय
सहायता
में
महत्वपूर्ण
वृद्धि
की
जानी
चाहिये।
14.
गत
वर्ष
परिषद
की
बैठक
में
राज्यों
द्वारा
यह
निवेदन
किया
गया था
कि
सर्वशिक्षा
अभियान
अंतर्गत
उनकी
हिस्सेदारी
नहीं
बढ़ायी
जानी
चाहिये
क्योंकि
इससे
कार्यक्रम
के
लिये
संसाधनों
की
उपलब्धता
पर
प्रतिकूल
प्रभाव
पड़
सकता
है।
केन्द्र
शासन
द्वारा
राज्यों
के
निवेदन
पर
विचार
किया
गया
तथा यह
सहमति
हुई है
कि
राज्यों
की
हिस्सेदारी
11वीं
योजना
अवधि
में
चरणबद्ध
रूप से
बढ़ायी
जायेगी।
इससे
इस
कार्यक्रम
के
माध्यम
से
शैक्षणिक
अधोसंरचना
का
विस्तार
करने
में
पिछड़े
राज्यों
को
निश्चित
रूप से
मदद
मिलेगी।
यह
प्रस्ताव
कि 10वीं
पंचवर्षीय
योजना
अवधि
में
नियुक्त
शिक्षकों
को
सर्वशिक्षा
अभियान
अंतर्गत
वेतन
भुगतान
नहीं
किया
जाना
चाहिये
बल्कि
नये
नियुक्त
होने
वाले
शिक्षकों
के
वेतन
का ही
भुगतान
किया
जाना
चाहिये,
पर भी
पुनर्विचार
किये
जाने
की
आवश्यकता
है। 10वीं
योजना
अवधि
में
सर्वशिक्षा
अभियान
के
अंतर्गत
शिक्षकों
के
वेतन
पर
किया
जाने
वाला
व्यय 20
प्रतिशत
था
जिसका
एक
चौथाई
हिस्सा
राज्यों
द्वारा
वहन
किया
गया।
यदि इस
अभियान
से इस
घटक को
हटा
दिया
जाता
है तो
उससे
राज्यों
की
हिस्सेदारी
35
प्रतिशत
से
बढ़कर
वास्तविक
रूप से
50
प्रतिशत
हो
जायेगी
जो
राज्यों
की
हिस्सेदारी
को
चरणबद्ध
रूप से
बढ़ाने
के
बारे
में
हुई आम
सहमति
के
विपरीत
है।
15.
सर्वशिक्षा
अबभयान-क्ष्क्ष्
के
अंतर्गत
शिक्षकों
के 75
प्रतिशत
पदों
को
महिलाओं
के
लिये
आरक्षित
करने
के
प्रस्ताव
पर
गंभीर
पुनर्विचार
करने
की
आवश्यकता
है। इन
स्कूलों
के
लिये
स्थानीय
रूप से
अर्हता
प्राप्त
उम्मीदवारों
के
मिलने
में
व्यवहारिक
कठिनाई
भी हो
सकती
है और
इस
कारण
इस बात
की
प्रबल
संभावना
है कि
ये पद
नगरीय
क्षेत्र
के
उम्मीदवारों
से भरे
जायें
जिससे
शिक्षकों
की
अनुपस्थिति
की
समस्या
और
गंभीर
हो
सकती
है। इस
बात की
भी
संभावना
है कि
अनुसूचित
जाति
तथा
जनजाति
की
महिलाओं
के
लिये
आरक्षित
पद
उपयुक्त
उम्मीदवारों
की कमी
के
कारण
खाली
रह
जायें।
16.
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
में यह
उल्लेख
है कि
अनुसूचित
जाति
तथा
जनजाति
सामाजिक
वर्गों
में
शाला
छोड़ने
की दर
अभी भी
अपेक्षाकृत
अधिक
है।
ऐतिहासिक
कारणों
से यह
वर्ग
अन्य
सामाजिक
वर्गों
की
तुलना
में
पीछे
रहे
हैं।
शैक्षणिक
अधोसंरचना
का लाभ
इन
वर्गों
तक
पहुंचाने
तथा
उन्हें
अध्ययन
हेतु
उपयुक्त
वातावरण
उपलब्ध
कराने
की
दृष्टि
से
छात्रावास,
आश्रम,
रहवासी
स्कूल
जैसी
विशिष्ट
संस्थाएं
अत्यंत
उपयोगी
तथा
प्रभावी
रही
हैं।
सर्वशिक्षा
अभियान
प्रारंभ
होने
के
पहले
भी इन
अधोसंरचनाओं
के
निर्माण
की आधी
लागत
केन्द्र
सरकार
वहन
करती
थी।
यद्यपि
10वीं
योजना
में
सर्वशिक्षा
अभियान
में
केन्द्र
की
हिस्सेदारी
75
प्रतिशत
थी,
अनुसूचित
जाति
तथा
जनजाति
के
लिये
संचालित
विशिष्ट
संस्थाओं
के
लिये
केन्द्र
की
हिस्सेदारी
50
प्रतिशत
ही
रही।
इस
विसंगति
को
सुधारने
की
आवश्यकता
है।
अनुसूचित
जाति
तथा
जनजाति
के
छात्रों
के
लिये
संचालित
विशिष्ट
शैक्षणिक
संस्थाओं
के
लिये
केन्द्रीय
हिस्सेदारी
75
प्रतिशत
होनी
चाहिये।
मध्यप्रदेश
में
शिक्षा
दर में
लिंग
विभेद
को कम
करने
के
लिये
ग्रामीण
क्षेत्र
की ऐसी
सभी
बालिकाओं
को
जिन्हें
3 कि.मी.
से
अधिक
दूरी
पर
स्कूल
जाना
पड़ता
है,
मुफ्त
साइकिलें
सरकार
की ओर
से दी
जा रही
हैं।
17.
कृषि
भूमि
से भार
कम
करने
के
लिये
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
कृषि
से इतर
रोजगार
के
अवसर
निर्मित
किये
जाने
और
ग्रामीणों
के
तकनीकी
कौशल
को
संवर्धित
करने
की
आवश्यकता
पर जो
बल
दिया
गया है
उसका
हम
स्वागत
करते
हैं।
परन्तु
इसके
लिये
आवश्यक
है कि
केन्द्र
और
राज्य
सरकारें
मिलकर
एक
देशव्यापी
कौशल
संवर्धन
की ठोस
योजना
बनायें
और सभी
स्तर
की
तकनीकी
शिक्षा
और
दीक्षा
के
लिये
उपयुक्त
संख्या
में
तकनीकी
संस्थाओं
की
स्थापना
करें।
18.
कम सकल
दर्ज
संख्या
अनुपात
वाले
जिलों
में 370
नये
महाविद्यालयों
की
स्थापना
तथा
उच्च
गुणवत्ता
के 6000
आदर्श
विद्यालयों
की
स्थापना
का
प्रस्ताव
सराहनीय
है।
प्रस्तावित
महाविद्यालयों
की
अधोसंरचना
निर्माण
पर
पूरा
पूंजीगत
व्यय
केन्द्र
द्वारा
वहन
करना
चाहिये
क्योंकि
आवर्ती
व्यय
का भार
तो सतत
रूप से
राज्यों
पर ही
आयेगा।
इससे
गरीब
राज्यों
के
शैक्षणिक
पिछड़ेपन
को दूर
करने
में
कुछ हद
तक मदद
मिलेगी।
यह भी
प्रस्ताव
है कि 16
राज्यों
में
जहां
कोई
केन्द्रीय
विश्वविद्यालय
नहीं
है,
वहां
एक-एक
विश्वविद्यालय
स्थापित
किया
जाये
तथा 14
विश्वस्तर
के
विश्वविद्यालय
अतिरिक्त
रूप से
स्थापित
किये
जायें।
यह
आग्रह
है कि
मध्यप्रदेश
जैसे
पिछड़े
राज्य
को
इनमें
से कुछ
विश्व
स्तर
के
विश्वविद्यालय
मिलेंगे
जिनमें
यांत्रिकी
तथा
चिकित्सा
शिक्षा
जैसी
विभिन्न
अकादमिक
शाखाएं
होंगी।
19.
राष्ट्रीय
ग्रामीण
स्वास्थ्य
मिशन
के
अंतर्गत
किये
जा रहे
प्रयासों
के
प्रभाव
संस्थागत
प्रसव
के
हिस्से
में
वृद्धि
तथा
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
स्वास्थ्य
केन्द्रों
के
क्रियाशील
होने
के रूप
में
परिलक्षित
होने
लगे
हैं।
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
सभी
मुख्य
संवर्गों
की कमी
को
प्रारूप
योजना
दस्तावेज
में
मुख्य
चिन्ता
के रूप
में
सही
चिन्हित
किया
गया
है।
अभावगस्त
राज्यों
में 60
नये
चिकित्सा
महाविद्यालय
और 225
नर्सिंग
महाविद्यालय
निजी
और
शासकीय
भागीदारी
में
स्थापना
से यह
अंतर
कम
होगा।
हम इस
प्रयास
का
स्वागत
करते
हैं।
इसी
प्रकार
जिन
सेवाविहीन
क्षेत्रों
में
नियमित
डॉक्टर
पर्याप्त
संख्या
में
उपलब्ध
नहीं
हैं
वहां
लायसेंस
प्राप्त
पंजीकृत
चिकित्सकों
की
व्यवस्था
को पुन:
चालू
करना
एक
अच्छा
निर्णय
है।
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
सेवा
पहुंचाने
की
दृष्टि
से
नर्स
प्रेक्टिशनर्स
को भी
ऐसा ही
उत्तरदायित्व
दिये
जाने
पर
विचार
किया
जाना
चाहिये।
लिंग
अनुपात
सुधारने
के
लिये
हमने
लाड़ली
लक्ष्मी
योजना
प्रारंभ
की है।
इसके
तहत
जन्म
पर
राजकोष
से
इतनी
राशि
बचत
पत्रों
के रूप
में
कन्या
के नाम
जमा
कराई
जाती
है कि
उसे 18
वर्ष
तक
शिक्षा
के
विभिन्न
चरणों
में 1,18,000
रुपये
की
राशि
प्राप्त
हो
जाये।
गरीबों
की
बेटियों
के
सामूहिक
विवाहों
के
अवसर
पर 6,000
रुपये
का
उपयोगी
सामान
शासन
की ओर
से
कन्यादान
योजना
के तहत
दिया
जाता
है।
20.
आदिवासी
क्षेत्रों
में
वर्ष 2004-05
में
गरीबों
का
प्रतिशत
47.3 है जो
अखिल
भारतीय
स्तर
से 20
प्रतिशत
अधिक
है।
जहां
वर्ष 1993-94
से 2004-05
के
अंतराल
में
राष्ट्रीय
स्तर
पर
गरीबी
का
अनुपात
8.7
प्रतिशत
घटा है,
वहीं
चिंता
की बात
है कि
आदिवासी
क्षेत्रों
में यह
कमी
केवल 2.7
प्रतिशत
रही
है।
21.
आदिवासी
क्षेत्रों
में इस
चिन्ताजनक
स्थिति
का
मुख्य
कारण
कृषि
की
अत्यंत
कम
उत्पादकता
है और
इस कम
उत्पादकता
का
एकमात्र
कारण
है
सिंचाई
के
साधनों
में
अनुपलब्धता।
सिंचाई
सुविधाओं
के
निर्माण
से
कृषि
उत्पादकता
में
वृद्धि
वन
संसाधनों
तथा
आजीविका
खेती
पर
जीवनयापन
करने
वाले
किसी
भी
समाज
के
विकास
के
लिये
आवश्यक
है। ए.आई.बी.पी.
सुविधा
के
अंतर्गत
लघु
सिंचाई
योजनाओं
की
त्वरित
स्वीकृति
एवं
क्रियान्वयन
के
लिये
वन
भूमि
के
व्यपवर्तन
की
अनुमति
की
प्रक्रिया
को सरल
बनाने
की
आवश्यकता
है।
प्रारूप
योजना
पत्र
में
सिंचाई
क्षमता
के
निर्माण
में इस
सुविधा
की
उपयोगिता
को सही
स्वीकारा
गया है
क्योंकि
ऐसी
योजनाओं
की
गर्भावधि
अल्प
है।
ऊंची-नीची
भूसंरचना
तथा वन
भूमि
के
व्यपवर्तन
पर रोक
के
कारण
विगत
तीन
दशकों
में
आदिवासी
क्षेत्रों
में
सिंचाई
सुविधाओं
का
विकास
अवरुद्ध
रहा
है।
कृषि
उत्पादकता
में
सुधार
के
कारण
भूमि
की भूख
कायम
है।
कृषि
उत्पादकता
में
वृद्धि
कमी के
कारण
वन
संसाधनों
पर
दबाव
निरंतर
बढ़
रहा
है। भू-संरचना
की
दृष्टि
से ये
सभी
क्षेत्र
ऊँचे-नीचे
हैं।
इस
कारण
परम्परागत
सिंचाई
योजनाओं
के
माध्यम
से
सिंचाई
के
संसाधनों
का
विकास
वहां
संभव
नहीं
है।
विडम्बना
यह है
कि
सिंचाई
के
साधनों
के
विकास
में वन
भूमि
का
उपयोग
माननीय
सर्वोच्च
न्यायालय
और
अन्य
वैधानिक
प्रतिबंधों
के
कारण
नहीं
हो पा
रहा
है।
केन्द्र
सरकार
और सभी
राज्य
सरकारों
को
मिलकर
इस
मामले
को
आपातकालीन
मानकर
न्यायपालिका
के साथ
विधिवत
चर्चा
करके
अविलंब
नहीं
सुलझाया
गया तो
स्थिति
को
विस्फोटक
होने
से
नहीं
रोका
जा
सकता।
नक्सलवादी
आतंकवाद
के
लिये
ऐसी ही
दशा
पृष्ठभूमि
का
निर्माण
करती
है।
22.
आदिवासियों
के
अधिकारों
की
रक्षा
हेतु
पारित
केन्द्रीय
अधिनियम
की
अधिसूचना
और
क्रियान्वयन
को
अनावश्यक
रूप से
विलंबित
किया
जा रहा
है। हम
पुरजोर
मांग
करते
हैं कि
इस
अधिनियम
को
लागू
किये
जाने
के
लिये
अपेक्षित
अधीनस्थ
विधान,
मार्गदर्शक
सिद्धांत
और
नियम
तुरंत
प्रकाशित
किये
जायें
और
निर्धारित
अवधि
में
आदिवासियों
को
उनके
चिरप्रतीक्षित
अधिकार
औपचारिक
रूप से
दर्ज
कराने
का काम
हो।
23.
देश के
गरीबों
में
कृषक
मजदूरों
का
प्रतिशत
1993-94 के 41
से
बढ़कर
1999-2000 में 47
होना
चिंता
का
विषय
है।
विशेषकर
जब
गरीबी
का
राष्ट्रीय
औसत
इसी
दौरान
37 से
घटकर 27
हो गया
है।
इसका
यह
अर्थ
है कि
विकास
प्रक्रिया
का लाभ
इस
वर्ग
को
नहीं
मिल
रहा
है।
ग्रामीण
स्कूलों
में
जाने
वाले
बच्चों
की
अनुपस्थिति
और
स्कूल
छोड़ने
की दर
में
वृद्धि
का
मुख्य
कारण
यह है
कि अति
पिछड़े
क्षेत्रों
के
कृषक
मजदूरों
को
आजीविका
अर्जन
हेतु
अन्य
स्थानों
पर
जाना
पड़ता
है।
राष्ट्रीय
रोजगार
गारंटी
योजना
से इस
वर्ग
को
रोजगार
तथा आय
के
अतिरिक्त
अवसर
उपलब्ध
हो रहे
हैं।
आम
आदमी
बीमा
योजना
एक
सराहनीय
प्रयास
है
जिससे
इस
वर्ग
को
आजीविका
अर्जन
करने
वाले
सदस्य
की
मृत्यु
अथवा
अपंगता
की
स्थिति
में
सामाजिक
सुरक्षा
प्राप्त
होगी।
मध्यप्रदेश
राज्य
में
भूमिहीन
कृषक
मजदूरों
के
लिये
एक
योजना
प्रारंभ
की है
जिसमें
प्रसूति
अवस्था
में 45
दिन का
सवेतन
अवकाश
तथा
बच्चों
को
छात्रवृत्ति
दी जा
रही
है।
24.
मध्यप्रदेश
में वन
क्षेत्र
30.8
प्रतिशत
राष्ट्रीय
औसत 22
प्रतिशत
से
काफी
अधिक
है। इन
राज्यों
द्वारा
पूरे
राष्ट्र
के
पर्यावरण
के
लिये
किये
जाने
वाले
त्याग
की
अवसर
लागत
को
पर्याप्त
रूप से
स्वीकारा
नही
गया
है।
विडम्बना
यह है
कि
हमें न
केवल
इन
क्षेत्रों
के
रखरखाव
पर
राशि
व्यय
करनी
पड़ती
है,
बल्कि
जिन
क्षेत्रों
में
यदि जल
संरक्षण
और
आदिवासियों
के
विकास
हेतु
वनभूमि
का
उपयोग
करना
पड़े
तो
उसका
निबल
वर्तमान
मूल्य
भी जमा
करना
पड़ता
है। इस
अवसर
लागत
के
लिये
पर्याप्त
मुआवजा
दिये
जाने
की
हमारी
पुरानी
मांग
रही
है। इस
न्यायोचित
मांग
को
स्वीकारने
तथा
ऐसी
कार्यविधि
अनुशंसित
करने
जो
निर्वनीकरण
को
हतोत्साहित
करे।
मैं
योजना
आयोग
को
धन्यवाद
देता
हूँ।
यह
न्यायोचित
ही है
कि जब
वन
सम्पदा
सम्पन्न
राज्यों
द्वारा
विकास
कार्यों
के
लिये
वन
भूमि
के
व्यपवर्तन
हेतु
मुआवजा
राशि
भूमि
के
निवल
वर्तमान
मूल्य
के
आधार
पर
देना
पड़ता
है तब
निर्वनीकरण
को
हतोत्साहित
करने
के
लिये
मुआवजे
राशि
का
निर्धारण
भी
निवल
वर्तमान
मूल्य
पर
प्राप्त
होने
वाले
समुचित
प्रतिफल
पर
आधारित
होनी
चाहिये।
25.
राष्ट्रीय
ग्रामीण
रोजगार
गारंटी
कार्यक्रम
से
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
निर्धन
वर्ग
को
पूरक
आय के
स्त्रोत
के रूप
में
बड़ी
राहत
मिली
है। इस
कार्यक्रम
हेतु
एक
बड़ी
धनराशि
अब
उपलब्ध
है। इस
धनराशि
का
विवेकपूर्ण
उपयोग
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
रोजगार
अवसरों
के
निर्माण
के साथ-साथ
उत्पादक
ग्रामीण
अंधोसंरचना
के
निर्माण
के
लिये
किया
जाना
चाहिये।
कार्यक्रम
अंतर्गत
भू एवं
जल
संरक्षण
कार्यों
को
सर्वोच्च
प्राथमिकता
दिया
जाना
सही
है।
वनीकरण
कार्यक्रम
को
रोजगार
गारंटी
कार्यक्रम
के साथ
जोड़ने
से
आदिवासी
क्षेत्रों
में
प्राकृतिक
संसाधनों
को
समृद्ध
करने
में
मदद
मिलेगी।
इसी
प्रकार
सैंच्य
क्षेत्र
विकास
कार्यों
में
रोजगार
गारंटी
की
धनराशि
के
उपयोग
की
अनुमति
स्वागत
योग्य
है
परन्तु
वनीकरण
जैसे
कार्यों
की
कार्यावधि
सामान्यत:
छ:
महीने
से
अधिक
होती
है।
रोजगार
गारंटी
अधिनियम
में यह
प्रावधानित
है कि
अकुशल
कार्य
की
मांग
करने
वाले
प्रत्येक
परिवार
को
वर्ष
में कम
से कम 100
दिन का
रोजगार
उपलब्ध
कराया
जाये
परन्तु
अब
वर्ष
में यह
अधिकतम
100 दिन
कर
दिया
गया
है।
इससे
वनीकरण
जैसे
कार्यों
के
क्रियान्वयन
में
व्यवहारिक
कठिनाई
हो रही
है।
इसलिये
रोजगार
गारंटी
योजना
अंतर्गत
प्रत्येक
परिवार
के
लिये 150
दिन तक
रोजगार
निर्माण
का
प्रावधान
होना
चाहिये
जिससे
उत्पादक
परिसम्पत्तियों
का
निर्माण
कराया
जा सके
एवं
पर्यावरणीय
दृष्टि
से
संवेदनशील
क्षेत्रों
में
प्राकृतिक
संसाधनों
का
सुधार
किया
जा
सके।
26.
हमें
ज्ञात
हुआ है
कि
उत्तरप्रदेश
के
बुन्देलखण्ड
क्षेत्र
को अति
पिछड़ा
मानकार
उसके
विकास
हेतु
केन्द्रीय
सहायता
की एक
योजना
बनाई
जा रही
है।
उत्तरप्रदेश
के
बुन्देलखण्ड
से लगा
हुआ ही
मध्यप्रदेश
का
बुन्देलखण्ड
है। यह
तो और
भी
अधिक
पिछड़ा
हुआ
है।
पिछले
4
वर्षों
से
अत्यंत
न्यून
वर्षा
के
कारण
वहां
पानी
का
संकट
आसन्न
है। इस
वर्ष
खेती
की
दोनों
फसलों
में से
कोई
फसल
नहीं
हो पाई
है।
सिंचाई
के
साधनों
का
वहां
नितांत
अभाव
है और
जो
थोड़े
बहुत
थे वे
सब सूख
गये
हैं।
वहां
स्थिति
आपातकालीन
हो गई
है।
हमारा
आग्रह
है कि
उत्तरप्रदेश
के
बुन्देलखंड
के साथ-साथ
मध्यप्रदेश
के
बुन्देलखंड
को भी
समान
रूप से
सहायता
मिलनी
चाहिये।
अन्यथा
यह
भेदभाव
होगा।
27.
सड़क
निर्माण
के साथ-साथ
सड़क
परिवहन
के ऊपर
जितना
ध्यान
दिया
जाना
चाहिये
था वह
नहीं
दिया
गया
है।
देश के
प्राय:
सभी
भागों
में
सड़क
परिवहन
की दशा
ठीक
नहीं
है। यह
ऐसा
व्यवसाय
है
जिसमें
निजी
निवेश
और
रोजगार
तथा आय
के
अवसरों
की
महती
संभावना
है।
ऊर्जा,
सड़क
निर्माण
तथा
अन्य
परम्परागत
अवसंरचना
के
क्षेत्रों
में
निजी
निवेश
की
अनुमति
के
कारण
अत्यंत
लाभ
हुआ
है।
परन्तु
केन्द्रीय
सड़क
परिवहन
अधिनियम
के
कतिपय
निषेधात्मक
प्रावधानों
के
कारण
परिवहन
में
निजी
निवेश
आकर्षित
नहीं
हो पा
रहा
है। यह
बात हम
पूर्व
बैठकों
में भी
उठा
चुके
हैं।
हम एक
बार
फिर
जोर
देकर
केन्द्र
सरकार
से
आग्रह
करते
हैं कि
केन्द्रीय
सड़क
परिवहन
अधिनियम
में
निजी
निवेश
को
आकर्षित
करने
के
लिये
आवश्यक
संशोधन
अविलम्ब
किया
जाय।
यह न
केवल
संसाधन
अनपेक्षित
नीति
परिवर्तन
होगा
बल्कि
निजी
निवेश
के
मार्ग
को
प्रशस्त
करेगा।
इस
दिशा
में
इंदौर
नगर बस
सेवा
प्रदाय
में
निजी
पूंजी
निवेश
का
प्रयास
अत्यंत
सफल
रहा
है।
28.
कृषि
व्यवसाय
लगातार
अलाभकर
होता
जा रहा
है।
इसके
तीन
मुख्य
कारण
हैं।
जोत का
आकार
छोटा
होते
जाना,
भूमि
की
उर्वरा
शक्ति
घटने
के
कारण
खेती
की
लागत
बढ़ते
जाना
और
कृषि
के
सापेक्ष
मूल्यों
का
पिछड़ते
जाना।
कृषि
की
उत्पादकता
सतत्
बनी
रहे
इसके
लिये
मृदा
में
जैव
पदार्थों
का
निश्चित
अनुपात
बनाये
रखने
के
लिये
ग्रामीण
और
शहरी
कूड़े-कर्कट
से
निर्मित
कम्पोस्ट
बनाये
जाने
और
प्रयोग
किये
जाने
की
राष्ट्रव्यापी
योजना
बननी
चाहिये।
वर्षा
आधारित
क्षेत्रों
की
उत्पादकता
कृषि
के
लिये
सिंचाई
साधनों
के
विकास
के
बिना
बढ़ाना
संभव
नहीं
है।
जोत के
आकार
को और
अधिक
घटने
से
रोकने
के
लिये
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
कृषि
से इतर
रोजगार
के
अवसरों
में
वृद्धि
और
ग्रामीणों
के
तकनीकी
कौशल
संवर्धन
के
राष्ट्रव्यापी
उपाय
आवश्यक
हैं।
इन
सबसे
ज्यादा
जरूरी
है
कृषि
के
सापेक्ष
मूल्यों
का
वस्तुपरक
गहन
अध्ययन
कर
न्यूनतम
समर्थन
मूल्य
प्रणाली
के
लिये
लागत
आंकलन
फार्मूले
की
समीक्षा।
किसानों
को
आमतौर
पर
न्यूनतम
समर्थन
मूल्य
से
ज्यादा
दाम
मिलें
ऐसे
उपायों
की
आवश्यकता
पर
सैद्धांतिक
बल तो
बहुत
दिया
गया
है।
परन्तु
उसके
लिये
अपेक्षित
नीतियां
और
कारगर
उपाय
नहीं
हो
पाये
हैं।
इस
विषय
के ऊपर
केन्द्र
को
राज्यों
से
विशद
परामर्श
कर एक
प्रभावी
नीति
अविलम्ब
बनानी
चाहिये।
29.
मुझे
आशा है
कि
हमारे
सुझावों
पर यह
परिषद
विचार
करेगी
तथा
उन्हें
11वीं
पंचवर्षीय
योजना
में
सम्मिलित
करने
का
समर्थन
करेगी।